ॐ
सद्गुरूं तं नमामि
ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् ।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरूं तं नमामि ।।
अर्थः
ब्रह्मानन्दं – जो ब्रह्मानन्द स्वरूप हैं,
परमसुखदं – परम सुख देने वाले हैं,
केवलं ज्ञानमूर्तिं – जो केवल ज्ञानस्वरूप हैं,
द्वन्द्वातीतं – (सुख-दुःख, शीत-उष्ण आदि) द्वंद्वों से रहित हैं,
गगनसदृशं – आकाश के समान सूक्ष्म और सर्वव्यापक हैं,
तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् – तत्त्वमसि आदि महावाक्यों के लक्ष्यार्थ हैं,
एकं – एक हैं,
नित्यं – नित्य हैं,
विमलमचलं – मलरहित हैं, अचल हैं,
सर्वधीसाक्षिभूतं – सर्व बुद्धियों के साक्षी हैं,
भावातीतं – भावों या मानसिक स्थितियों के अतीत माने परे हैं,
त्रिगुणरहितं – सत्त्व, रज, और तम तीनों गुणों के रहित हैं,
सद्गुरूं तं नमामि – ऐसे श्री सद्गुरूदेव को मैं नमस्कार करता हूँ ।
I prostrate myself before that Guru, the Bliss of Brahman, the bestower of Supreme Happiness, who is Knowledge absolute, transcending the pairs of opposites, expansive like the sky, the goal indicated by the great sayings like “Thou art That”, the one eternal, pure, unchanging, the witness of functions of the intellect, who is above all Bhavas (mental conditions) and the three Gunas (Sattva, Rajas and Tamas).