श्रीकृष्ण कि वंशी ध्वनि
श्रीकृष्ण कि वंशी ध्वनि सुनी ।
तो स्तम्भित हुआ यमुना पानी ।
मृगों ने दन्ते तृण दबाए रखा ।
टूट गई उनकी तिर्छी चितवन ।
सुन वंशी स्वन ।
और न बजा न बजा हे श्यामघन ॥
जल छोड़ मीन भूमि गिरे ।
वृक्षों के पत्ते सब झड पड़े ।
शुष्क तरुएँ पल्लवित हुए ।
कुलवधुओं ने लाज छोड़े ।
सुन वंशी स्वन ।
और न बजा न बजा हे श्यामघन ॥
काष्टपुतली वत बने ।
सहश्र गोपी ताकते रहे ।
राधा-कृष्ण विनु नाहीँ अन्य ।
स्वामी कृष्णानन्द माँगे वंशी में शरण ।
सुन वंशी स्वन ।
और न बजा न बजा हे श्यामघन ॥
स्वामी कृष्णानन्द
रचना – ३० जुलाई २०१४ ॥
© २०१४, सर्वाधिकारसुरक्षित ।
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