Thursday, August 21, 2014

सद्गुरूं तं नमामि

Sad Gurum Tam Namami


सद्गुरूं तं नमामि


ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् ।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरूं तं नमामि ।।

अर्थः
ब्रह्मानन्दं – जो ब्रह्मानन्द स्वरूप हैं,
परमसुखदं – परम सुख देने वाले हैं,
केवलं ज्ञानमूर्तिं – जो केवल ज्ञानस्वरूप हैं,
द्वन्द्वातीतं – (सुख-दुःख, शीत-उष्ण आदि) द्वंद्वों से रहित हैं,
गगनसदृशं – आकाश के समान सूक्ष्म और सर्वव्यापक हैं,
तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् – तत्त्वमसि आदि महावाक्यों के लक्ष्यार्थ हैं,
एकं – एक हैं,
नित्यं – नित्य हैं,
विमलमचलं – मलरहित हैं, अचल हैं,
सर्वधीसाक्षिभूतं – सर्व बुद्धियों के साक्षी हैं,
भावातीतं – भावों या मानसिक स्थितियों के अतीत माने परे हैं,
त्रिगुणरहितं – सत्त्व, रज, और तम तीनों गुणों के रहित हैं,
सद्गुरूं तं नमामि – ऐसे श्री सद्गुरूदेव को मैं नमस्कार करता हूँ ।

I prostrate myself before that Guru, the Bliss of Brahman, the bestower of Supreme Happiness, who is Knowledge absolute, transcending the pairs of opposites, expansive like the sky, the goal indicated by the great sayings like “Thou art That”, the one eternal, pure, unchanging, the witness of functions of the intellect, who is above all Bhavas (mental conditions) and the three Gunas (Sattva, Rajas and Tamas).

Wednesday, August 20, 2014

वन्दना स्तोत्रं


Vandana Stotram


वन्दे गुरोः श्री हरिहरानन्दम्

His Divine Grace Paramahansa Hariharānanda
Master Kriyā Yogi


वन्दे गुरोः श्री हरिहरानन्दम् ।
सुथं गौरे वर्ण दिव्य कान्तिम् ॥
ललाटे सिन्द्वर अरुणाभ ज्योतिम् ।
वन्दे गुरोः श्री चरणारविन्दम् ॥

इस गीत को “यू-ट्यूब” में सुनिए ..

स्वामी कृष्णानन्द

रचना – ४ जुलाई १९९१ ॥

© २०१४, सर्वाधिकारसुरक्षित ।

Tuesday, August 19, 2014

पकडो श्रीगुरु पाद हे


Pakdo Sri Guru Paad He

पकडो श्रीगुरु पाद हे


भाग्यमें है तो पकडो पकडो पद्मपाद हे ।
सौभाग्य हो तो पकडो जकडो श्रीगुरु पाद हे ॥

पकडे रहो श्रीगुरु के जुगल पद्मपाद ।
खंडन होंगे सब कालविपत्ति प्रमाद ।
भाग्यमें हो तो पकडो जकडो श्रीपाद हे ॥

किया है जब दोष बखानो श्रीगुरु पास ।
छेदन हो निर्वृत्ति अपराधों से आस ।
भाग्यमें हो तो पकडो जकडो श्रीपाद हे ॥

पाप जलेंगे ब्रह्म में ख्याति अलेख धर्म में ।
सम्पूर्ण निर्वेद हो लगो सात्विक कर्म में ।
भाग्यमें हो तो पकडो जकडो श्रीपाद हे ॥

सत्य है यह पथ मनमें अप्रत्यय न कर ।
अथवा पस्चात् में होगा प्रमाद का असर ।
भाग्यमें हो तो पकडो जकडो श्रीपाद हे ॥

ॐ-कार परम पद पियो मकरन्द मधु ।
बोले स्वामी कृष्णानन्द अति ही स्वादु ।
भाग्यमें हो तो पकडो जकडो श्रीपाद हे ॥

भाग्यमें है तो पकडो पकडो पद्मपाद हे ।
सौभाग्य हो तो पकडो जकडो श्रीपाद हे ॥

स्वामी कृष्णानन्द

रचना – ३० जुलाई २०१४ ॥

© २०१४, सर्वाधिकारसुरक्षित ।

Monday, August 18, 2014

श्रीकृष्ण कि वंशी ध्वनि


Shri Krishna Ki Vanshi Dhvani

श्रीकृष्ण कि वंशी ध्वनि


श्रीकृष्ण कि वंशी ध्वनि सुनी ।
तो स्तम्भित हुआ यमुना पानी ।
मृगों ने दन्ते तृण दबाए रखा ।
टूट गई उनकी तिर्छी चितवन ।
सुन वंशी स्वन ।
और न बजा न बजा हे श्यामघन ॥

जल छोड़ मीन भूमि गिरे ।
वृक्षों के पत्ते सब झड पड़े ।
शुष्क तरुएँ पल्लवित हुए ।
कुलवधुओं ने लाज छोड़े ।
सुन वंशी स्वन ।
और न बजा न बजा हे श्यामघन ॥

काष्टपुतली वत बने ।
सहश्र गोपी ताकते रहे ।
राधा-कृष्ण विनु नाहीँ अन्य ।
स्वामी कृष्णानन्द माँगे वंशी में शरण ।
सुन वंशी स्वन ।
और न बजा न बजा हे श्यामघन ॥

स्वामी कृष्णानन्द

रचना – ३० जुलाई २०१४ ॥

© २०१४, सर्वाधिकारसुरक्षित ।

Sunday, August 17, 2014

वृन्दावनमें बंशी


Vrindaban Men Bahshi

वृन्दावनमें बंशी कौन बजाया


वृन्दावनमें बंशी किसने बजाया ?
“राधा, राधा, राई !” कह बुलाया ॥

छिन्दन होवे नाभि गाँठ ।
कटि पर वस्त्र न रहे आँट ।
सरक जाए आवरण का पट ॥

वृन्दावनमें बंशी किसने बजाया ?

यमुना जल बहें उछल ।
मकरन्द झरें तरल ।
पी कर सभी विह्वल ॥

वृन्दावनमें बंशी किसने बजाया ?

मुनियोंके आश्रम उभर ।
रस मे भीगें झरझर ।
बाघ संग कुरंगी दौड़े तत्पर ॥

वृन्दावनमें बंशी किसने बजाया ?

स्वामी कृष्णानन्द निवेदन ।
राधा-कृष्ण पादों का मनन ।
चित्त में सदा रहे अनन्य ॥

वृन्दावनमें बंशी किसने बजाया ?

स्वामी कृष्णानन्द

रचना – २ अगस्त २०१४ ॥

© २०१४, सर्वाधिकारसुरक्षित ।

Saturday, August 16, 2014

कहाँ लेजाते हो जगन्नाथ को


Kahan Le Jate Ho Jagannath Ko

कहाँ लेजाते हो जगन्नाथ को?


कहाँ लेजाते हो जगन्नाथ को?
हम दर्शन करेंगे किनको?

खुंटिया बोले जब ।
पहंडी में निकलें तब ।
विजे कीजे प्रभु चाप पर अब ॥

कहाँ लेजाते हो जगन्नाथ को?
हम दर्शन करेंगे किनको?

कुलवधू विरह वेदना में गरजें ।
पंडा सब भूमिपर लोटें तरसें ।
विधाता बाम हुए क्या ओडिशा सों ॥

कहाँ लेजाते हो जगन्नाथ को?
हम दर्शन करेंगे किनको?

बड़े देउल से निकल कर ।
सकट रथ पर विजे कर ।
रेणु जो गिरता होगा श्रीमुख पर ॥

कहाँ लेजाते हो जगन्नाथ को?
हम दर्शन करेंगे किनको?

कहत स्वामी कृष्णानन्द ।
धिक्कार हमारे जीवन मन्द ।
निर्माल्य हो तो आनन्द कन्द ॥

कहाँ लेजाते हो जगन्नाथ को?
हम दर्शन करेंगे किनको?

स्वामी कृष्णानन्द

रचना – ३० जुलाई २०१४ ॥

© २०१४, सर्वाधिकारसुरक्षित ।

Friday, August 15, 2014

शुकदेव आविर्भावोत्सव


Sri Sukdev Avataran

शुकदेव आविर्भावोत्सव


तात मात करें रोदन ।

चारों और से लौटकर
पूछ-पूछ कर
कि कहाँ गये हमारे
एकनन्दन ॥

पिता बीजामृत न गवाँकर
माता प्रसवकाल दुःख न पाकर
गर्भसे पतित हो चले किस पथ पर
भये ब्रह्मज्ञ कुछ विद्या न पाकर ॥

जन्म से ही क्षुधा तृष्णा नहीं
उदर भरा है कुछ खाया नहीं
तेल और कुंकुम अंग लगे नहीं
सुवर्ण देह आभा लौकिक नहीं ॥

अनुमान करे सम्पूर्ण संसार
रो-रो कर अविवेक विचार
पुत्र वदन न देखकर
तात मात साथ स्वामी कृष्णानन्द करें रोदन ॥

स्वामी कृष्णानन्द

रचना – ३० जुलाई २०१४ ॥

© २०१४, सर्वाधिकारसुरक्षित ।